भीष्म पितामह ने धैर्य धारण करने की शिक्षा


जब भीष्म पितामह ने धैर्य धारण करने की शिक्षा दी धैर्य 


एक बार भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को यह कथा सुनाई- नैमिषारण्य में रहने वाले एक ब्राह्मण का बालक अल्पायु में ही चल बसा। परिवार के लोग बालक का शव लेकर श्मशान पहुंचे। तभी वहां एक गिद्ध आया और कहने लगा- सभी को अपनी आयु समाप्त होने पर जाना ही पड़ता है। देखो सूर्यास्त हो चुका है, अब तुम इसका मोह छोड़कर घर जाओ। 

गिद्ध की बातें सुनकर वे लोग जाने लगे। तभी वहां एक गीदड़ आकर कहने लगा- तुम लोग वास्तव में बड़े स्नेहशून्य हो। अभी तो सूर्यास्त भी नहीं हुआ। किसी शुभ घड़ी में यह बालक कहीं जी ही उठे। गीदड़ की बातें सुनकर लोग फिर लौट आए। उन्हें फिर आया देख गिद्ध कहने लगा- अरे बुद्धिहीनो, मरे हुए संबंधी को बार-बार देखने से शोक बढ़ता है। जाओ लौट जाओ। जब वे लोग लौटने को हुए तो फिर गीदड़ कह उठा- भगवान श्रीराम ने शंबूक को मारकर ब्राह्मण के मरे बालक को पुन: जिंदा कर दिया था। 

राजर्षि श्वेत ने तपोबल से अपने मृत बेटे को जीवित कर दिया था। हो सकता है कि कोई देवता प्रकट होकर इसे जीवनदान दे दें। इस प्रकार गिद्ध व गीदड़ परस्पर विरोधी बातें कहते रहे। वास्तविकता यह थी कि दोनों अपनी भूख मिटाना चाहते थे। गीदड़ सोचता कि दिन में गिद्ध इसे लेकर उड़ जाएगा इसलिए गिद्ध सूर्यास्त की बात कहता और गीदड़ सूर्यास्त न होने की। तभी सहसा भगवान शंकर ने प्रकट हो बालक को जीवनदान दे दिया और उसे 100 वर्ष की आयु प्रदान की।

सार यह है कि किसी कार्य में लगातार असफलता मिले तो भी दृढ़निश्चय के साथ धैर्यपूर्वक  उसी को करते रहने से अंतत: सफलता मिलती ही है।

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