प्रभु राम के काम का मान


प्रभु राम के काम का मान

भगवान के काम का मान कैसे रखें, यह रामचरित मानस के सुंदरकांड के एक प्रसंग में हनुमान से सीखा जा सकता है। हनुमान समुद्र को पार कर रहे हैं। वे मन में लगातार राम का नाम भी जपते जा रहे हैं। समुद्र भी राम भक्त था, वह एक रिश्ते से राम का पूर्वज भी रहा है। समुद्र ने जब देखा कि हनुमान लगातार उड़ रहे हैं, सौ योजन के समुद्र को एक उड़ान में पार करना कठिन काम है सो सागर ने मैनाक पर्वत जो कि उसी के भीतर रहता था, को कहा कि वो हनुमान को विश्राम दे। मैनाक ने हनुमान से कहा कि तुम राम के काम से जा रहे हो, थको नहीं, कुछ देर मुझ पर विश्राम कर लो। मुझ पर कई मीठे फल वाले वृक्ष भी हैं थोड़ा आहार भी ले लो। 

हनुमान जल्दी में थे लेकिन फिर भी उन्होंने मैनाक के इस प्रस्ताव को अनदेखा नहीं किया। उन्होंने उसे छूकर कहा कि भाई मैं तो प्रभु के काम से जा रहा हूं। भगवान के काम किए बगैर में विश्राम कैसे कर सकता हूं। मैनाक को छूकर हनुमान ने उसका भी सम्मान रखा, और बिना रुके आगे चल दिए।

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