विभीषण-राम मिलाप


 विभीषण-राम मिलाप 

राम, रावण से युद्ध के लिए समुद्र के किनारे पर आ गए थे। सेना सहित समुद्र को पार करने पर विचार विमर्श चल रहा था। तभी विभीषण को छोड़कर राम की शरण में आ गए। विभीषण जब समुद्र किनारे पहुंचे तो वानरों में खलबली मच गई। किसी ने उनको दूत समझा, किसी ने गुप्तचर। सभी के मन में शंका जाग गई कि रावण का भाई हमारे शिविर में क्यों आया है। सुग्रीव ने विभीषण को आकाश में ही ठहरने को कहकर राम के पास आ गए। सूचना दी कि रावण का भाई विभीषण आपसे मिलने आया है। राम ने सुग्रीव से पूछा कि क्या करना चाहिए। 

सुग्रीव ने सलाह दी कि यह शत्रु का भाई है, हमारा भेद लेने आया है, यह राक्षस है और इस पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। इसे बंदी बना लेना चाहिए। राम ने विचार किया और कहा नहीं हम पहले उससे मिलेंगे। बात करेंगे, वानर धैर्य से काम लें। अगर वह हमारा भेद भी लेने आया है तो कोई परेशानी नहीं है। इस दुनिया में जितने भी राक्षस हैं उन्हें लक्ष्मण अकेला ही मारने में सक्षम है। राम ने विभीषण से मुलाकात की, विभीषण राम के मित्र हो गए, जिसके साथ के कारण ही रावण को मारना संभव हो पाया। 

राम शक्ति से सम्पन्न थे लेकिन उन्होंने धर्म और धैर्य नहीं छोड़ा, शत्रु पर भी विश्वास जताया, अपने बल पर भी उन्हें भरोसा था। जिसके सहारे उन्होंने रावण पर विजय पाई।रामायण का यह  प्रसंग इस बात को बहुत अच्छे से स्पष्ट करता है।सफलता के लिए केवल शक्तिशाली होना ही काफी नहीं होता है। सफलता के लिए धैर्य, धर्म, विश्वास और शक्ति का सामंजस्य होना जरूरी है। अगर इनका सामंजस्य नहीं हो तो फिर सफलता मिलना मुश्किल होता है। जरूरी है कि आप शक्ति के साथ धर्म पर विश्वास रखें, धैर्य से काम लें और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने में सक्षम हों तो सफलता आसानी से आपके पास खुद चल कर आ जाएगी। 



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