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शारदीय नवरात्र व्रत कथा

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नवरात्र प्रसंग में श्री रामचरित मानस का बड़ा ही दिव्य वर्णन है। इस संदर्भ में जनमेजय एवं वेदव्यास का कथोपकथन श्रवण योग्य एवं अनुकरणीय है। उक्त कथोपकथन में जिज्ञासावश जनमेजय ने महात्मा वेदव्यास से पूछा कि भगवान राम ने नवरात्र व्रत क्यों किया था? उन्हें वनवास क्यों दिया गया? सीता जी का हरण हो जाने पर उन्हें प्राप्त करने के लिए उन्होंने क्या किया? व्यास जी ने कहा-''सीता हरण के समय की बात है। भगवान श्री राम सीता विरह से अत्यंत व्याकुल थे। उन्होंने भ्राता लक्ष्मण से कहा-'सौमित्रे! जानकी का कुछ भी पता न चला। उसके बिना मेरी मृत्यु बिलकुल निश्चित है। जानकी के बिना अयोध्या में मैं पैर ही न रख सकूंगा। राज्य हाथ से चला गया। बनवासी जीवन व्यतीत करना पड़ा। पिताजी सुरधाम सिधारे। स्त्री हरी गई। पता नहीं, दैव आगे क्या करेगा। मनुके उत्तम वंश में हमारा जन्म हुआ। राजकुमार होने की सुविधा हमें निश्चित सुलभ थी। फिर भी वन में हम असीम दुख भोग रहे हैं। सौमित्रे! तुम भी राजसी भोग का परित्याग करके दुर्दैव की प्रेरणा से मेरे साथ निकल पड़े। लो, अब यह कठिन कष्ट भोगो। लक्ष्मण! जनक सुता सीता बचपन के