तब लक्ष्मण को खाली हाथ लौटा दिया था रावण ने





कई लोग प्रबंधन से जुड़े होने के बावजूद भी परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करना नहीं जानते। वे हर समय अपने ही प्रभाव में होते हैं। परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करना, अपनी भूमिका को समझना और सामने वाले से कोई काम निकलवाना। ये सब मैनेजमेंट के गुर होते हैं, जो हर व्यक्ति को पता नहीं होते। हम हैं भले एक ही लेकिन परिस्थिति के मुताबिक हमारी भूमिकाएं बदलती रहती है, हमें अपनी भूमिका के मुताबिक व्यवहार को सीखना चाहिए। 


रामायण युद्ध की एक घटना इस बात की शिक्षा देती है। राम ने रावण की नाभि में तीर मार कर चित कर दिया था। वह रथ से धरती पर गिर पड़ा। अंतिम समय नजदीक था, रावण आखिरी सांसें ले रहा था। सभी उसके आसपास जमा होने लगे। ऐसा माना जाता है कि उस समय राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि रावण महापंडित है, राजनीति का विद्वान है। जाओ उससे राजनीति के कुछ गुर सीख लो, वह युद्ध हार चुका है, अब हमारा शत्रु नहीं है। लक्ष्मण ने राम की बात मानी और रावण के नजदीक सिर की ओर जाकर खड़े हो गए, रावण से राजनीति पर कोई उपदेश देने की प्रार्थना की। रावण ने लक्ष्मण को देखा और उसे बिना शिक्षा दिए, यह कहकर लौटा दिया कि तुम अभी मेरे शिष्य बनने लायक नहीं हो। 


लक्ष्मण ने राम के पास जाकर यह बात बताई। राम ने कहा तुम कहां खड़े थे, लक्ष्मण ने कहा रावण के सिर की ओर। राम ने कहा तुमने यहीं गलती की, तुम अभी योद्धा या युद्ध में जीते हुए वीर नहीं जो मरने वाले शत्रु के सिर के पास खड़े हो, अभी तुम एक विद्यार्थी हो, जो राजनीति सीखना चाहते हो, अबकी बार जाओ और रावण के पैर की ओर खड़े होकर प्रार्थना करना। लक्ष्मण ने ऐसा ही किया, रावण ने प्रसन्न होकर लक्ष्मण को राजनीति की कई बातें बताई। उसके बाद प्राण त्याग दिए।

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