जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि


जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि 

रामदास रामायण लिखते जाते और शिष्यों को सुनाते जाते थे| हनुमान जी भी उसे गुप्त रुप से सुनने के लिये आकर बैठते थे| समर्थरामदास ने लिखा, “हनुमान अशोक वन में गये, वहाँ उन्होंनें सफेद फूल देखे|”

यह सुनते ही हनुमान जी झट से प्रकट हो गये और बोले, “मैंने सफेद फूल नहीं देखे थे| तुमने गलत लिखा है, उसे सुधार दो|”

समर्थ ने कहा, “मैंने ठीक ही लिखा है| तुमने सफेद फूल ही देखे थे|”

हनुमान ने कहा, “कैसी बात करते हो! मैं स्वयं वहाँ गया और मैं ही झूठा!”

अन्त में झगडा श्री रामचंद्र्जी के पास पहुँचा| उन्होंने कहा की, “फूल तो सफेद ही थे, परन्तु हनुमान की आँखें क्रोध से लाल हो रही थीं, इसलिए वे उन्हें लाल दिखाई दिये|”

इस मधुर कथा का आशय यही है कि संसार की ओर देखने की जैसी हमारी दृष्टि होगी, संसार हमें वैसा ही दिखाई देगा| 

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