रावण का स्वभाव
रावण के पुत्र ने कहा नीति सुनिए पहले दूत भेजिए, और सीताजी को देकर श्रीरामजी से प्रीति कर लीजिए। यदि वे स्त्री पाकर लौट जाएं, तब तो झगड़ा न बढ़ाइए। नहीं तो युद्धभूमि में उनसे मार-काट कीजिए। रावण उसकी बातें सुनकर गुस्से से लाल हो गया बोला तेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। तुझे अभी से मन में संदेह क्यों हो रहा है। पिता की यह कठोर बात सुनकर वह अपने महल को चला गया शाम का समय जानकर रावण अपनी बीसों भुजाओं को देखता हुआ महल को चल दिया। लंका की चोटी पर एक बहुत विचित्र महल था। वहां नाच-गाना व अखाड़ा जमता था। रावण उस महल मैं जाकर बैठा। किन्नर उसके गुणों का गान करने लगे। सुंदर अप्सराएं नृत्य कर रही थी। वह इंद्र की तरह ही भोग विलास कर रहा था। इधर रामजी बहुत भीड़ के साथ बड़े पर्वत पर उतरे। उस रमणीय शिखर पर लक्ष्मणजी ने वृक्षों के कोमल पत्ते और सुंदर फूल अपने हाथों में सजाकर बिछा दिए। उस पर सुंदर मृगछाला बिछा दी। उसी आसन पर कृपालु रामजी विराजमान हैं। वानरराज सुग्रीव ने अपना सिर रामजी की गोद में रखा हुआ है। उनकी बांयी और धनुष तथा बांयी और तरकस है। विभीषण बोले लंका की चोटी पर एक महल है। र