राधा और कृष्ण के विवाह की कथा

श्रीकृष्ण के गुरू गर्गाचार्य जी द्वारा रचित “गर्ग संहिता” में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं का सबसे पौराणिक आधार का वर्णन किया गया है। गर्ग संहिता के सोलहवें अध्याय में राधा और कृष्ण के विवाह की कथा है।
कथा  की शुरूआत श्रीकृष्ण के बाल अवस्था से होती है। जब कृष्ण की उम्र महज दो साल सात महीने थी। एक बार नंद बाबा बालक कृष्ण को लेकर अपने गोद में खिला रहे हैं। उनके साथ दुलार करते हुए वो वृंदावन के  भांडीरवन में आ जाते हैं।
                             
बालक कृष्ण के सुंदर मुख को देखते हुए उनके मन में ख्याल आता है कि वो कितने खुशनसीब हैं कि खुद भगवान उनकी गोद में खेल रहे हैं। नंद बाबा को ये पता रहता है कि बालक कृष्ण कोई साधारण बालक नहीं है। नंद के मन में भक्ति का भाव उमड़ता है। इस बीच एक बड़ी ही अनोखी घटना घटती है। अचानक तेज हवाएं चलने लगती हैं। बिजली कौंधने लगती है। देखते ही देखते चारों ओर अंधेरा छा जाता है। और इसी अंधेरे में एक बहुत ही दिव्य रोशनी आकाश मार्ग से नीचे आती है। नंद जी समझ जाते हैं कि ये कोई और नहीं खुद राधा देवी हैं जो कृष्ण के लिए इस वन में आई हैं। वो झुककर उन्हें प्रणाम करते हैं। और बालक कृष्ण को उनकी गोद में देते हुए कहते हैं कि हे देवी! मैं इतना भाग्यशाली हूं कि भगवान कृष्ण मेरी गोद में हैं और आपका मैं साक्षात्‌ दर्शन कर रहा हूं। भगवान कृष्ण को राधा के हवाले करके नंद जी घर वापस आते हैं तब तक तूफान थम जाता है। अंधेरा दिव्य प्रकाश में बदल जाता है और इसके साथ ही भगवान भी अपने बालक रूप का त्याग कर के किशोर बन जाते हैं। भांडीरवन के पास ही एक वंशी वन है जहां भगवान कृष्ण अक्सर वंशी बजाने जाया करते थे। कहा जाता है कि हज़ारों साल पुराना वंशी वन आज भी मौजूद है साथ ही वो वृक्ष भी मौजूद है जिसपर कृष्ण भगवान बांसुरी बजाए करते थे। कहा तो इतना जाता है कि आज भी अगर उस वृक्ष में कान लगाकर सुनेंगे तो आपको बांसुरी और तबले की आवाज़ सुनाई देती है। राधा से शादी के बाद भगवान कृष्ण काफ़ी दिनों तक इस वन में रहे। लेकिन एक दिन उन्हें अचानक नंद गांव की याद आ गई। विवाह के बाद काफ़ी दिनों तक भगवान श्रीकृष्ण राधा के साथ इन वनों में रास रचाते रहे। लेकिन एक दिन उन्हें नंद गांव की याद आई और वो राधा की गोद में वैसे ही बालक बन गए जैसे राधा को नंद जी ने दिया था। इस घटना के बाद तो राधा रोने लगी। इसके बाद एक आकाशवाणी हुई। “हे राधा! इस वक्त शोक मत करो। अब तुम्हारा मनोरथ कुछ वक्त के बाद पूरा होगा।” राधा समझ गई कि भगवान अब अपने उस काम के लिए आगे बढ़ रहे हैं जिसके लिए उन्होंने अवतार लिया है। इसके बाद राधा भगवान श्रीकृष्ण के बालक रुप को गोद में लेकर नंद गांव गई और नंद के हाथों बाल गोपाल को समर्पित कर दिया

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